Friday, November 12, 2010

मासूम चिड़िया


एक छोटे से घोसले में मैंने आँखें खोली..
जब होश संभाला तो देखा कि माँ चिड़िया की आँखों में नमी थी..
माँ चिड़िया ने बहुत कुछ देखा था, सहा था
हमेशा से उसने एक ही बात कही - बेटा, इस दुनिया में बहुत से व्याध हैं. 
वो तुम्हे पकड़ लेंगे..

घोसले से उठा के माँ चिड़िया ने मुझे ज़मीन पे रखा
मेरे पंख कमज़ोर थे. 
अकेले  उड़ने  में  डर  लगता  था  मुझे 

माँ चिड़िया और मेरे भाई-बहन मुझे अपने सहारे उड़ाते थे 
आसमान में उड़ना अच्छा लगता था, वो  ठंडी  हवा , वो  ख़ुशी  से  दिन  गुज़ारना ... 
पर...

मेरे आस पास कई चिड़िया थी  
जब भी मैं इधर से उधर फुदकती थी अकेले
तो सुना करती थी..
वो हसी, वो मज़ाक, वो आस्मां में यूँ ही उड़ते रहना
इधर - उधर जाना
उनका साथ मुझे और अकेला कर जाता था.

अचानक एक दिन, 
तुम आई 
तुम्हारी  आँखों में एक प्यार था, सच्चाई थी, 
तुमने  मुझे अपने  साथ उड़ने  को  कहा ..
मैं उडी 
और  वो  सारी  ख़ुशी  मुझे  मिली ..

माँ चिड़िया खुश थी.. क्यूंकि मैं खुश थी.
पर जब भी मैं घोसले से निकलती, मुझे कहती  - बेटा, व्याध से बचना.
तुम्हारे साथ उड़ना मुझे इतना अच्छा लगता था,
तुम्हारा प्यार, तुम्हारा साथ..
मुझे कुछ ज्यादा ही यकीन हो चला था खुद पे, तुम पे 
कभी नहीं सोचा की मैं व्याध के हाथ आउंगी.

लेकिन,
कई बार बाकी चिड़िया मुझे पत्थर मारती थी.
मुझे चोट लगी.
मैंने तुम्हे पास बुलाया
तुम कभी थी, कभी नहीं

तुमने फिर बोला - उड़ो .. दुनिया ऐसी ही है.
और मैं उड़ते गयी.
माँ चिड़िया ने समझाया - बेटा संभल के जाना.

उड़ते उड़ते मैं उस इलाके में आ गयी जहाँ अलग- अलग  पंछी थे..
उनके  पंख  विशाल थे .
उनकी   हँसी  मुझे  अजीब  लगती  थी .
मैं  "मैं"  नहीं  होती  थी  वहां 
पर  तुम  इन सब के साथ घुल मिल चुकी थी.

वो तुम्हे भी चोट पहुचाते थे,  लेकिन मैं  तुम्हारे  साथ  थी .
और  कुछ  वक़्त  के  बाद तुम  फिर  उनकी  दोस्त  थी 

मेरे पंख को देख के बाकी पंछी  हसते  थे .
क्यूंकि मैं अकेले नहीं  उड़ सकती थी.
उन्होंने  मुझे  कई  तरीके  से  चोट  पहुचाया 
मैंने तुम्हे पास बुलाया 
कभी तुम थी, कभी नहीं

पर तुमने कहा - आओ, मैं हूँ न. 
और  तुम्हारे साथ मैं फिर भी उड़ते गयी.
माँ चिड़िया ने कहा - उड़ो बेटा, लेकिन व्याध के हाथ मत आना. मैंने देखी है दुनिया.. इसलिए कहती हूँ

लेकिन
एक दिन  मैं कई  व्याध के बीच  फँस गयी.
उन्होंने  मुझे जाल में पकड़ा
और मेरे पंख को आहिस्ते आहिस्ते काट दिया...
 
मैं रोई..मैंने  तुम्हे  पुकारा 
लेकिन  तुम्हे  व्याध  गलत  नहीं  लगे .
तुमने  मुझे  ही  समझा  दिया -  "मना किया था व्याध के पास जाने से न".

जब मैं वापस आई 
माँ चिड़िया घोसले में बैठी रोई मेरी हालत देख
उसने कहा - बेटा कहा था, संभल के चलना

मुझे दर्द था, दुःख था..
मैं बोहोत रोई.. हिचक हिचक के रोई..

पर अब भी उस आसमान को देख उड़ने की इच्छा होती है.
पहले कोशिश करती  थी  उड़ने की तो उड़ लेती थी.
पर.. 

फिर भी तुम कहती -  उड़ो
तुमने  तो  देखा  - मेरे पंख ही नहीं  बचे.
दर्द होता है मुझे.
तुम्हे मैंने पास बुलाया
तुम कभी थी, कभी नहीं..

डर है मुझे, कहीं तुम्हारे साथ भी ऐसा न हो.. क्यूंकि कहीं मैंने तुम में खुद को भी देखा..
और उड़ने  का  मन मेरा  भी  है .. बस इतना बता दो  - कैसे?

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